महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी विशिष्ट स्वास्थ्य समस्याएं – Healthya Style
महिलाओं के स्वास्थ्य में विभिन्न प्रकार के लिंग (Gender) विशेष स्वास्थ्य समस्याएं और स्थितियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे एस्ट्रोजन (Hormones) का बनना, मानसिक स्वास्थ्य, यौन स्वास्थ्य और प्रजनन संबंधी समस्याएं।
पुरुषों की तुलना में, महिलाएं अधिक नाटकीय रूप से मानसिक और शारीरिक परिवर्तनों से गुजरती हैं, क्योंकि उनकी प्रजनन प्रणाली कई बड़े बदलावों से होकर गुजरती है। यदि महिलाएं चाहें, तो उचित आहार खाकर, उचित जांच करवाकर और स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर अपने स्वास्थ्य का ध्यान अच्छे से रख सकती हैं।
महिलाओं के स्वास्थ्य से संबंधित तथ्य
महिलाओं का शरीर अपने पूरे जीवनकाल में कई बड़े बदलावों से गुजरता है, जिससे अलग-अलग आयु समूहों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में भी अंतर होता है।
महिलाएं शारीरिक परिवर्तन के दौरान, मानसिक स्वास्थ्य की परेशानी जैसे अवसाद, चिंता और खाने के विकारों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। वयस्क होने पर प्रजनन क्षमता, एसटीडी से बचाव और सुरक्षित जन्म नियंत्रण जैसे यौन स्वास्थ्य समस्याओं का महत्व बढ़ जाता है।
रजोनिवृत्ति के बाद, कुछ महिलाओं के हार्मोन स्तर में बदलाव के कारण स्वास्थ्य की समस्याओं का अनुभव होता है। संयोग से, महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली अधिकांश बीमारियों का पता यदि जल्दी चल जाए, तो उनका इलाज किया जा सकता है, और महिलाएं आसान स्वास्थ्य सलाह का पालन करके लंबा और खुशहाल जीवन जी सकती हैं।
महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में कुछ चौंकाने वाले तथ्य
- महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रमुख जोखिमों में हृदय रोग, कैंसर, हड्डियों की कमजोरी (Osteoporosis) और अवसाद शामिल हैं।
- पुरुषों की तुलना में, महिलाओं में तनाव और अवसाद का निदान होने की संभावना अधिक होती है।
- STD, प्रजनन संबंधी मामले और जन्म नियंत्रण के तरीके महिलाओं के यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
- अस्थिसंधिशोथ (Osteoarthritis) पुरुषों की तुलना में, महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है।
- पुरुषों की तुलना में, महिलाओं को UTI होने की संभावना दोगुनी होती है।
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महिलाओं के जीवन का सफर कैसा होता है?
प्रजनन चक्र किसी भी महिला के जीवन के कई पड़ावों को अत्यधिक रूप से प्रभावित करता है। एस्ट्रोजेन (Estrogen) का स्तर किशोरावस्था से लेकर वयस्कता और वृद्धावस्था के दौरान महिलाओं के कई शारीरिक परिवर्तनों को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।
गर्भ में (Conception) आने के समय से ही, लड़कियों में शारीरिक अंतर होना शुरू हो जाता है। वे गर्भनाल (Placenta) में ही जीन को स्पष्ट कर देते हैं, जो प्लेसेंटा (Placenta) के विकास और गर्भावस्था में सहायता करते हैं। गर्भ में रहते हुए ही लड़कियों के स्तनों का विकास शुरू हो जाता है, और वे जन्म से ही दूध-वाहिनी प्रणाली (Milk-duct System) के साथ पैदा होती हैं।
बचपन और किशोरावस्था (Adolescence) के दौरान, लड़कियां बार-बार होने वाली अंतःक्रियाओं, द्वंद्व और चिढ़न के माध्यम से अपनी शख्सियत को स्थापित करना शुरू कर देती हैं। आठ साल की उम्र होते होते, अंडाशय एस्ट्रोजेन बनाना शुरू कर देते है, जिससे स्तन (Breasts) और एरोला (Areola) बड़े हो जाते हैं और निप्पल के आसपास बड्स दिखने लगते हैं। उनके जघन बाल (Pubic hair) और बाहों के बगल के बाल भी बढ़ने लगते हैं।
महिलाओं की जिंदगी रजोनिवृत्ति के बाद
अधिकतर महिलाओं में, रजोनिवृत्ति 40 के बाद और 50 की शुरुआत में शुरू होती है। यह अधिकृत रूप से तब शुरू होता है, जब एक महिला को मासिक धर्म पूरे साल तक नहीं आता है। इस दौरान, एस्ट्रोजेन (Estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) के स्तर में उतार-चढ़ाव भी होता रहता है। जैसे ही एस्ट्रोजेन का स्तर घटता है, शरीर के कई ऊतक – स्तनों सहित – नमी और लचीलापन खो देते हैं।
जीवन के इस समय में, बुजुर्ग माता-पिता को देखभाल की आवश्यकता होती है, पर नौकरी पेशा बच्चे अक्सर घर से दूर होते हैं, और वैवाहिक जीवन भी साथी की स्वास्थ्य समस्याओं के कारण प्रभावित होता है। ये सभी कारक कई महिलाओं में अवसाद और शारीरिक थकान की उच्च दर का कारण बनते हैं।
जैसे-जैसे आयु संभाव्यता बढ़ी है, वैसे ही रजोनिवृत्ति के बाद (Post Menopausal) रोगों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई है। कई महिलाएं मूत्र असंयम, पुरानी माइग्रेन और स्तन कैंसर जैसी शारीरिक हालातों से प्रभावित होती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस, हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया (उच्च कोलेस्ट्रॉल) और एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों में पट्टिका का निर्माण) भी रजोनिवृत्ति के बाद कई महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करने लगते हैं।
उम्र की इस ढलान के वर्षों में, कई महिलाएं मित्रों और परिवार के सदस्यों के खोने का दर्द भी अनुभव करती हैं। उनकी शारीरिक शक्ति और याददाश्त कमजोर हो जाती है, और कई महिलाएं अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में एकाकी रहने लगती हैं, जो उनकी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को और बढ़ा देता है। वृद्धावस्था में हृदय और मस्तिष्क संबंधी संवहनी रोगों (Cerebrovascular) का खतरा भी बढ़ जाता है।
महिलाओं के सामान्य रोग और स्थितियां
महिलाएं भी पुरुषों की तरह ही कई स्थितियों और बीमारियों से प्रभावित होती हैं, लेकिन बीमारियां उन्हें अलग तरह से और अलग-अलग समय पर प्रभावित करती हैं। कई लिंग-विशिष्ट (Gender-specific) रोग भी हैं, जो केवल महिलाओं को ही प्रभावित करते हैं।
उच्च रक्तचाप विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। पुरुषों की तुलना में, महिलायें को आमतौर पर 45 वर्ष की आयु तक उच्च रक्तचाप का खतरा कम होता है। 45-65 तक महिला और पुरुष दोनों में एक समान जोखिम होता है, लेकिन महिलाओं में 65 के बाद उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त, रजोनिवृत्ति के बाद कई सामान्य रक्तचाप वाली महिलाओं में उच्च रक्तचाप की समस्या पैदा हो जाती है।
अपने पूरे जीवन के दौरान, महिलाओं को मेटाबोलिक सिंड्रोम (Metabolic Syndrome) स्थिति का सबसे अधिक खतरा होता है। मेटाबोलिक सिंड्रोम उच्च रक्तचाप, उच्च ग्लूकोज स्तर, मोटापा और अनियंत्रित कोलेस्ट्रॉल स्तर बढ़ने का कारण बनता है। मेटाबॉलिक सिंड्रोम वाली महिलाओं को दिल का दौरा पड़ने का खतरा अधिक होता है।
ऑटोइम्यून बीमारी ल्यूपस (Lupus) भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करती है। स्वस्थ लोगों की तुलना में ल्यूपस वाले लोग कैंसर और संक्रमण से अधिक मरते हैं।
महिलाओं को मूत्र पथ के संक्रमण (Urinary Tract Infections), या UTI के होने की भी अधिक संभावना होती है, विशेष रूप से 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को। UTI के कारण बार-बार पेशाब आता है और पेशाब के दौरान जलन महसूस होती है। यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, तो यह गुर्दे में भी फैल सकता है, जिससे सेप्सिस (Sepsis) हो सकता है। सेप्सिस शरीर की संक्रमण के प्रति एक प्रतिक्रिया है, यह प्रतिक्रिया अपने स्वयं के ऊतकों और अंगों को नुकसान पहुंचाने लगती है। जो कभी-कभी मृत्यु का कारण भी बनता है।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम क्या है?
मेटाबॉलिक सिंड्रोम क्या है? मेटाबॉलिक सिंड्रोम (Metabolic Syndrome) से तात्पर्य है कुछ आंतरिक मेटाबॉलिक स्थितियों का समूह जिनसे आपको भविष्य में डायबिटीज (Diabetes), हृदय रोग और स्ट्रोक (Stroke) जैसे रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती है। मेटाबॉलिक सिंड्रोम में उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर), हाई ब्लड शुगर, कमर के पास चर्बी (Belly Fat) का जमा होना और असामान्य कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) लेवल शामिल है। जब इस प्रकार की 3 स्थितियां एक साथ मिल जाती हैं, तो आपको मेटाबॉलिक सिंड्रोम होता है। तो आइए जानते है कि मेटाबॉलिक सिंड्रोम के कारण क्या है और मेटाबॉलिक सिंड्रोम से बचाव के लिए क्या-क्या करना चाहिए।
Reference – https://www.thehealthsite.com/hindi/diseases-conditions/metabolic-syndrome-occurs-when-these-3-diseases-come-together-in-hindi-786770/
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हृदय रोग (Cardiovascular Disease)
महिलाओं के लिए हृदय रोग एक प्रमुख जानलेवा बीमारी है, यह हर साल महिलाओं में होने वाली सभी मौतों की एक तिहाई के लिए जिम्मेदार है। महिलाएं अक्सर इसे अनदेखा कर देती हैं, और विशेषज्ञों को पहले लगता था, कि यह “पुरुषों की बीमारी” है। हृदय रोग के परिणामों में दिल का दौरा, हृदय वाल्व की समस्याएं, स्ट्रोक और अनियमित दिल की धड़कन (Arrhythmia) शामिल हैं।
हृदयवाहिनियों के रोग (Cardiovascular disease) एक प्रकार का हृदय रोग है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं को देर से हृदय रोग होने का अनुभव होता है, और दिल का दौरा पड़ने वाली लगभग 42% महिलाओं की मृत्यु एक साल के अंदर हो जाती है। जबकि, केवल 24% पुरुषों के मामले में ऐसा होता है। हृदय रोग सभी महिला मौतों का लगभग 25% है। अचानक हृदय रोग से होने वाली मौतों में, करीबन 64% महिलाओं को लक्षण कभी महसूस ही नहीं हुए।
कैंसर (Cancer)
National Cancer Registry Program Report 2020 के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 3.5 लाख महिलाओं की मौत की बड़ी वजह कैंसर है।
महिलाओं को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले कैंसर के प्रकार जो हैं, उनमें स्तन कैंसर, गर्भाशय का कैंसर, त्वचा कैंसर, फेफड़े का कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर शामिल हैं।
स्तन कैंसर लगभग 14.8% भारतीय महिलाओं को प्रभावित करता है, लेकिन जल्द पता चलने पर बचने की संभावना अधिक होती है। यह महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है, प्रति वर्ष अनुमानतः 6 लाख महिलाओं की मृत्यु होती है।
भारत में महिलाओं में कैंसर से होने वाली मौत का प्रमुख कारण फेफड़ों का कैंसर है, हर साल लगभग 17 लाख लोगों की मौत।
मानव पेपिलोमा वायरस (HPV-Human Papilloma Virus) विभिन्न प्रकार के कैंसर का कारण बनते हैं, जो महिलाओं के लिए हानिकारक हो सकते हैं:
ग्रीवा कैंसर (Cervical Cancer)
HPV से संक्रमित महिलाओं में, लगभग हर तरह के सर्वाइकल कैंसर का कारण बनता है।
गुदा कैंसर (Anal Cancer)
HPV से संक्रमित महिलाओं में, लगभग 95% गुदा कैंसर का कारण बनता है।
गले का कैंसर (Oropharyngeal Cancer)
HPV से संक्रमित महिलाओं में, सभी प्रकार के गले के कैंसर का लगभग 70% कारण बनता है। हालांकि, टीके अक्सर HPV को बढ़ने से रोक सकते हैं।
हड्डियों का कमजोर होना (Osteoporosis)
लाखों लोग ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित हैं, एक ऐसी बीमारी जो हड्डियों को कमजोर और खोखला बना देती है। यह वृद्ध महिलाओं को सबसे अधिक प्रभावित करती है, जिससे उनकी हड्डियाँ अधिक आसानी से टूट जाती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस वाले लोगों में कूल्हे, रीढ़ और कलाई की हड्डी में फ्रैक्चर या टूटने की आशंका सबसे अधिक होती है।
ऑस्टियोपोरोसिस के लिए उच्च जोखिम वाले लोगों में शामिल हैं:
- वृद्ध/बुजुर्ग
- छोटी, दुबली पतली महिलाएं
- एशियाई और श्वेत महिलाएं
- ऑस्टियोपोरोसिस के पारिवारिक इतिहास वाले
- एनोरेक्सिया नर्वोसा वाले
- कैल्शियम और विटामिन डी की कमी वाले
- अधिक शराब का सेवन करने वाले
- धूम्रपान करने वाले
अवसाद/उदासी/निराशा (Depression)
महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा डिप्रेशन का अनुभव करती हैं। इससे महिला के काम करने, सोने, खाने और खुश रहने की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक आत्महत्या करने का प्रयत्न करती हैं।
अवसाद में योगदान देने वाले कारकों में जीन, हार्मोन और तनाव शामिल हैं। जब महिलाओं के हार्मोन बदलते हैं, तो उनके दिमाग की केमिस्ट्री भी बदल जाती है। कई महिलाओं को जवानी में, प्रसव के बाद और रजोनिवृत्ति के दौरान या बाद में अवसाद का अनुभव होता है।
जिन महिलाओं को दो सप्ताह से अधिक समय तक उदासी महसूस होती है, उन्हें डॉक्टर या चिकित्सक से मिलना चाहिए। थेरेपी से अवसाद का इलाज हो सकता है, और कुछ मामलों में, दवाएं भी मदद कर सकती हैं, हालांकि, कई दवाओं के गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं, इसलिए लाभों को होने वाले नुकसान के मद्देनजर अवश्य देखना चाहिए।
महिलाओं में भोजन विकार (Eating Disorder)
खाने के विकार से लाखों पुरुष और महिलाएं परेशान हैं, लेकिन अधिकांश महिलाएं ही इस समस्या से पीड़ित होती हैं। एनोरेक्सिया नर्वोसा या बुलिमिया नर्वोसा (Anorexia nervosa or Bulimia nervosa) से पीड़ित लोगों की कुल संख्या का अनुमानित 85% महिलाएं हैं।
खाने के विकार मानसिक और शारीरिक बीमारियां हैं। हमारी संस्कृति, पारिवारिक इतिहास, तनाव और जीन्स (Genes) खाने के विकार को पैदा होने में अपना संभावित योगदान देते हैं।
एनोरेक्सिया नर्वोसा (Anorexia Nervosa)
एनोरेक्सिया वाले लोगों को वजन बढ़ने का डर होता है। वे भोजन की मात्रा को सख्ती के साथ कम कर देते हैं। एनोरेक्सिक्स अक्सर चिंता, क्रोध और तनाव से बचने के लिए खुद को भूखा रखते हैं। वे प्रायः ऐसा महसूस करते हैं, कि उनका वजन अधिक है, भले ही उनका वजन सामान्य से भी कम हो।
बुलिमिया नर्वोसा (Bulimia Nrvosa)
बुलिमिया से पीड़ित लोगों को भी वजन बढ़ने का डर सताते रहता है। हालांकि, वे पहले तो अधिक मात्रा में खाना खाते हैं, फिर वो भोजन को अक्सर उल्टी करके या जुलाब की गोली खाकर अपने शरीर से निकालने की कोशिश करते हैं। बुलीमिक्स को ऐसा लगता है, कि वे खाना खाने पर नियंत्रण नहीं रख सकते। एनोरेक्सिक्स के विपरीत, उनका वजन सामान्य हो सकता है।
खाने के विकार वाले लोग निम्न गंभीर दुष्प्रभावों को अनुभव करते हैं:
मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं
उदासी, मूडी या चिड़चिड़ापन, याददाश्त की समस्या और बेहोशी की संभावना
हृदय की समस्याएं
निम्न रक्तचाप और धीमी हृदय गति
खून की समस्या
एनीमिया (ऑक्सीजन ले जाने वाली रक्त कोशिकाओं की कमी)
गुर्दे से संबंधित समस्याएं
गुर्दे की पथरी और गुर्दे की विफलता का खतरा बढ़ जाता है
आंतों की समस्या
कब्ज, आंतों में सूजन
हार्मोनल समस्याएं
मासिक धर्म बंद होना, गर्भधारण में परेशानी, गर्भपात का खतरा और प्रसवोत्तर अवसाद
अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – आपका मासिक धर्म चक्र कैसे काम करता है? (विस्तृत जानकारी)
त्वचा संबंधी समस्याएं
त्वचा का फटना और त्वचा का सूखना या पीला पड़ना
बालों की समस्या
बालों का गिरना, बालों का पतला होना
अतिरिक्त समस्याएं
मांसपेशियों का कमजोर होना, जोड़ों में सूजन, हड्डियों का कमजोर और फ्रैक्चर होना
महिलाओं का यौन स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता
किसी महिला का यौन स्वास्थ्य ही उसकी तंदुरुस्ती को परिभाषित करता है, मतलब वह पूरी तरह से यौन गतिविधियों में भाग और आनंद ले सकती है।
शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और पारस्परिक कारक महिला के यौन स्वास्थ्य को प्रभावित करते रहते हैं। यौन अंग, हार्मोन बनाने वाली ग्रंथियां, मस्तिष्क और शरीर के बाकी हिस्से सेक्स को संभव बनाते हैं। लेकिन अनुभव, अपेक्षाएं और भावनाएं जैसे मानसिक कारक भी यौन स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
यौन संचारित बीमारियां (Sexually Transmitted Diseases)
यौन संचारित रोग, या STD, महिलाओं के यौन स्वास्थ्य की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक हैं। सामान्य STD में HPV, HIV, सिफलिस, क्लैमाइडिया, गोनोरिया और जननांग दाद (Genital Herpes) शामिल हैं। महिलाएं कंडोम का उपयोग करके, साथी के इतिहास को जानकर और टीका (Vaccine) लगवाकर कई प्रकार की STD से खुद को बचा सकती हैं।
STD से संक्रमित कुछ लोग स्वस्थ महसूस करते हैं, क्योंकि उन्हें पता ही नहीं रहता है, कि वे संक्रमित हैं। यह गर्भवती होने के बारे में सोचने वाली महिलाओं के लिए चिंता की बात है। इसलिए, कि गर्भवती महिलाएं इस बीमारी को अपने अजन्मे बच्चे को अंजाने में उपहार में दे सकती हैं।
वैसे तो, STD के लिए कई सारे उपचार मौजूद हैं। हाँ, यदि इसका पता जल्दी चल जाए, तो गोनोरिया या क्लैमाइडिया का इलाज संभव है। HIV के उपचार से महिलाओं को लंबा, स्वस्थ जीवन जीने में मदद मिल सकती है।
एंडोमेट्रियोसिस (Endometriosis)
एंडोमेट्रियोसिस तब होता है, जब एंडोमेट्रियम ऊतक (गर्भाशय के अंदर पाया जाने वाला ऊतक) शरीर के अन्य भागों में बढ़ता है – जैसे अंडाशय, गर्भाशय की बाहरी सतह, फैलोपियन ट्यूब, श्रोणि के अंदर और मूत्राशय में बढ़ सकता है, जो ऊतकों की सूजन और गंभीर दर्द का कारण बनता है।
हर महीने गर्भधारणा हेतु एंडोमेट्रियम (Endometrium) मोटा हो जाता है, गर्भधारण न होने की स्थिति में यह टूट जाता है और खून के साथ योनि मार्ग से बाहर निकल जाता है, जिसे पीरियड्स या मासिक धर्म चक्र (Menstrual Cycles) कहते हैं।
एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित महिलाओं को पीरियड्स में दर्द, कमर के निचले हिस्से में दर्द, सेक्स के दौरान दर्द और पाचन संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं। ऐसी हालत वाली आधी महिलाओं को गर्भधारणा में दिक्कत का सामना करना पड़ता है।
डॉक्टर आमतौर पर एंडोमेट्रियोसिस का इलाज दर्द निवारक, सूजन-रोधी (Anti-inflammatory) दवाओं, फर्टिलिटी ट्रीटमेंट (Fertility Treatments), सर्जरी या जन्म नियंत्रण (Birth Control) जैसी हार्मोनल दवाओं से करते हैं।
जन्म नियंत्रण (Birth Control)
लगभग हर महिला अपनी जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर जन्म नियंत्रण का प्रयत्न अवश्य करती है। भारत में 98% से अधिक महिलायें जन्म नियंत्रण का उपयोग करती हैं, और अनुमानतः 66% नियमित रूप से इसका उपयोग करती हैं।
अधिकांश महिलाओं के लिए, जन्म नियंत्रण का प्राथमिक उद्देश्य गर्भधारणा से बचना है। हालांकि, कुछ पढ़ी लिखी महिलाएं जन्म नियंत्रण के साथ STD के प्रसार को रोकने या हार्मोन को नियंत्रित करने में इसका उपयोग करती हैं। महिलाओं को सख्ती के साथ उपलब्ध सभी जन्म नियंत्रण के विकल्पों के बारे में विचार करना चाहिए और निर्धारित करना चाहिए, कि कौन सा विकल्प सबसे अच्छा है।
प्रचलित जन्म नियंत्रण विधियों में हार्मोनल तरीके, अंतर्गर्भाशयी उपकरण (IUD-Intrauterine Device) और अन्य गर्भनिरोधक तरीके भी शामिल हैं। महिलाओं को जन्म नियंत्रण के लिए बेहतरीन गर्भनिरोधक का चुनाव हमेशा डॉक्टर की परामर्श लेकर करना चाहिए।
जन्म नियंत्रण के प्रकार का चयन करते समय महिलाओं को जिन बातों पर विचार करना चाहिए उनमें शामिल हैं:
- कब वे बच्चे पैदा करना चाहती हैं, हर हालत में
- उनकी पूरी स्वास्थ्य स्थिति
- वे कितनी बार सेक्स करते हैं
- उनके यौन साथी कितने हैं
- STD होने का खतरा कितना है
- जन्म नियंत्रण विधि की प्रभावशीलता क्या है
- जन्म नियंत्रण विधि के दुष्प्रभाव क्या हैं
- संभावना है, कि वे जन्म नियंत्रण विधि का ठीक से उपयोग कर सकते हैं
हार्मोनल तरीके (Hormonal Methods)
जन्म नियंत्रण के तरीकों में सबसे व्यापक रूप से प्रचलित है, दैनिक हार्मोनल गोली है। अन्य हार्मोनल विधियों में पैच, रिंग, शॉट्स हार्मोनल आईयूडी (IUD) और प्रत्यारोपण (Implants) शामिल हैं। लेकिन, हर तरीका एक दूसरे से भिन्न है।
महिलाओं को हर दिन एक गोली लेनी चाहिए, लेकिन हार्मोनल IUD सिर्फ पांच साल तक ही ले सकती हैं। “i-Pill” आपातकालीन स्थितियों में ले सकती हैं, जैसे कि कंडोम टूट/फट जाने पर या किसी दिन गोली लेना भूलने पर। अन्य हार्मोनल तरीकों के विपरीत, इसे लेने के लिए डॉक्टर के पर्ची की आवश्यकता नहीं होती है।
हालांकि, सभी गर्भनिरोधक तरीकों के कुछ न कुछ साइड इफेक्ट होते हैं। जन्म नियंत्रण की गोलियों से ऊपरी श्वसन संक्रमण, खुजली, पित्ती, उच्च कोलेस्ट्रॉल, पित्ताशय की बीमारी, रक्त के थक्के, दिल का दौरा और स्ट्रोक जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
हार्मोनल डिवाइस दिल का दौरा, स्ट्रोक और रक्त के थक्के का खतरा बढ़ा सकता है।
स्थायी जन्म नियंत्रण (Permanent Birth Control)
यदि कोई महिला कभी भी गर्भवती नहीं होना चाहती हैं, तो वह जन्म नियंत्रण के किसी एक स्थायी रूप का चुनाव कर सकती हैं, जिसे महिला नसबंदी भी कहा जाता है। महिला नसबंदी के तरीकों में ट्यूब बांधना (Tubal Ligation) शामिल हैं। यह प्रक्रिया स्थाई हैं, इस प्रक्रिया को बदला नहीं जा सकता है।
ट्यूबों को बांधने के लिए सर्जरी की जाती है, जिसमें दोनों फैलोपियन ट्यूब बंद कर दिया जाता है। लगभग 30 मिनट तक चलने वाली इस प्रक्रिया में, सर्जन ऑपरेशन करके दोनों फैलोपियन ट्यूबों को ब्लॉक कर देता है। यह प्रक्रिया लगभग 100% गर्भावस्था को रोकती है।
प्राकृतिक परिवार नियोजन (NFP-Natural Family Planning)
जब महिलाएं गर्भवती नहीं होना चाहतीं हैं, लेकिन जन्म नियंत्रण का कोई विकल्प उनके पास नहीं होता है, ऐसे में वे प्राकृतिक परिवार नियोजन (NFP) तरीके का उपयोग करती हैं।
यह गर्भावस्था को रोकने के लिए जन्म नियंत्रण के अन्य रूपों की तरह उतना प्रभावी नहीं है, और हाँ, इस तरीके को उपयोग में लाने के लिए महिलाओं की माहवारी का नियमित होना अनिवार्य है।
NFP में, महिलाओं को दिनों को याद रखना पड़ता है, कि कब उनके गर्भवती होने की सबसे अधिक संभावना होती है और उन दिनों में वे यौन संबंध बनाने से बचती हैं। गर्भवती होने के लिए उन दिनों में यौन संबंध बनाकर गर्भधारण की संभावना बढ़ा भी सकती हैं, जिन दिनों गर्भ ठहरने की संभावना अधिक होती है।
बचाव के तरीके (Barrier Methods)
बचाव के तरीके शुक्राणु को अंडे तक पहुँचने से रोकती हैं। सबसे लोकप्रिय तरीका पुरुष कंडोम है, जिसे सेक्स के दौरान लिंग के ऊपर पहना जाता है। अन्य तरीकों में महिला कंडोम और सर्वाइकल कैप (Cervical Cap) शामिल हैं। HIV और कुछ अन्य STD के प्रसारण को रोकने में पुरुष कंडोम प्रभावी हैं।
महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्य सुझाव (Health Tips)
महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली कई स्थितियों और बीमारियों का इलाज या रोकथाम की जा सकती है। स्वस्थ आहार खाने से महिला को हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, कुछ प्रकार के कैंसर और ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा कम हो सकता है।
महिलाओं के स्वास्थ्य की जांच के लिए सिफारिश की जाती है:
- उम्र 40-49 की महिलाओं को अपने डॉक्टर से स्तन कैंसर जांच (Mammogram) के बारे में पूछना चाहिए।
- उम्र 50-74 की महिलाओं को हर दो साल में स्तन कैंसर जांच (Mammogram) करानी चाहिए।
- उम्र 21-65 की महिलाओं को हर तीन साल में गर्भाशय ग्रीवा कैंसर जांच (Pap Smear test) करानी चाहिए।
- उम्र 30-65 की महिलाओं को हर पांच साल में एक HPV परीक्षण करवाना चाहिए।
- उम्र 50-75 की महिलाओं को कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) के लिए नियमित जांच करवानी चाहिए।
- 1945 से 1965 के बीच जन्मे लोगों की हेपेटाइटिस सी (Hepatitis C) की जांच करवानी चाहिए।
- सभी महिलायें जिनका रक्तचाप उच्च है, मधुमेह के लिए जांच करानी चाहिए।
- फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer): यदि वे तम्बाकू या धूम्रपान का सेवन करती हैं, तो जांच करवायें।
- ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis): 65 वर्ष की उम्र में जांच करवायें।
- यौन संचारित रोग (Sexually Transmitted Diseases): यदि वे गर्भधारण की योजना बना रही हैं, तो जांच करवायें।
- अवसाद (Depression): यदि वे दो सप्ताह से अधिक समय तक उदासी, निराशा या काम करने में आनंद की कमी महसूस करती हैं, तो अपने डॉक्टर से बात करें।
महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सुझाव: (Health Tips for Women)
- शारीरिक रूप से सक्रिय रहें – इसमें टहलना, बागवानी और नृत्य करना शामिल है। हर दिन लगभग 30 मिनट की मध्यम शारीरिक गतिविधि करने का प्रयास करें।
- स्वस्थ आहार लें – सब्जियां, फल, मीट, साबुत अनाज, कम वसा वाले डेयरी उत्पादों को खाएं और उच्च कोलेस्ट्रॉल, ट्रांस वसा, संतृप्त वसा, नमक (सोडियम) और अतिरिक्त चीनी वाले खाद्य पदार्थों को खाने से बचें।
- हाइड्रेटेड रहें – पर्याप्त मात्रा में पानी पीने और मूत्र विसर्जन से UTI को रोकने में मदद मिलती है।
- स्वस्थ वज़न बनाए रखें – भोजन के द्वारा ली गई कैलोरी को बर्न की गई कैलोरी से संतुलित करें।
- शराब न पियें – पुरुषों की तुलना में, शराब महिलाओं के शरीर को अधिक नुकसान पहुंचाती है, इसलिए महिलाओं को शराब नहीं पीनी चाहिए।
- धूम्रपान न करें।
- STD से बचने का उपाय करें – परीक्षण करवाएं, अपने साथी का इतिहास जानें, कंडोम का उपयोग करें और हेपेटाइटिस ए और बी और HPV के लिए टीका लगवाएं।
- मानसिक रूप से उत्तेजक गतिविधियों में शामिल होना – बौद्धिक गतिविधियां 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को कुछ मानसिक स्वास्थ्य रोगों से बचाने में मदद करती हैं।
- एस्पिरिन लेने के बारे में अपने डॉक्टर से पूछें। एस्पिरिन 55 और 70 वर्ष की आयु के बीच की कुछ महिलाओं में स्ट्रोक को रोकने में मदद कर सकती है।
- यदि आप गर्भधारण की योजना बना रही हैं, तो अपने डॉक्टर से फोलिक एसिड की खुराक लेने के बारे में पूछें।
- ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने में मदद के लिए, अपने डॉक्टर से कैल्शियम और विटामिन डी की खुराक के बारे में पूछें।
Last but not Least…
महिलाओं के स्वास्थ्य में, प्रजनन चक्र में परिवर्तन उनके स्वस्थ जीवन में नाटकीय परिवर्तन का कारण बनता है, जिसके कारण वे लिंग-विशेष बीमारियों और स्थितियों के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाती हैं।
महिलाएं अपने शरीर में होने वाले बदलावों के प्रति जागरूक होकर और होने वाली बीमारियों या स्थितियों के गंभीर खतरों के बारे में समझकर अपने स्वास्थ्य सेवा की जिम्मेदारी ले सकती हैं। एक स्वस्थ आहार शैली, व्यायाम और उचित जांच के साथ, महिलाएं वृद्धावस्था में प्रसन्न और परेशानी से मुक्त रह सकती हैं।
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Disclaimer
इस लेख के माध्यम से दी गई जानकारी, बीमारियों और स्वास्थ्य के बारे में लोगों को सचेत करने हेतु हैं। किसी भी सलाह, सुझावों को निजी स्वास्थ्य के लिए उपयोग में लाने से पहले हमेशा अपने चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
References –
https://online.regiscollege.edu/online-masters-degrees/online-master-science-nursing/womens-health-nurse-practitioner/resources/health-issues-specific-womens-health/
https://www.who.int/news-room/commentaries/detail/ten-top-issues-for-women’s-health
Good work Ashok
thanks Bhai.